कल सोचती रही  साईं क्यू इम्तिहान लेते हो,
सब सही चलता है फिर अचानक क्यू गिराते हो,
सोचते सोचते दिन बीता रात घिर आयी थी,
कही से एक आवाज आई चल उठ आगे बढ़,
बीत गयी घड़ी दुःख की चल नई शुरुआत कर,
मैं साथ तेरे चल रहा हु क्यू तू मायूस है,
क्यू फिक्र इन छोटी रुकावटो की,
जब चोटी को तुझे पाना है
चल उठ हौसला कर हिम्मत बटोर ले
मंज़िल दूर नही अब बस हाथ भर की दूरी है
कदम बढ़ा बाहे फैला इनमे बड़ी खुशियाँ समेटना है
मैं दूँगा तुझे जो साथ रहेगा हमेशा तेरे,
सोच उन उचाईयों की जो छूनी है तुझे



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